SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रियमेलक चौपई ] सोरठीया दूहा ३ क्रीड़ा करण कुमार, इण अवसर पनि आवियउ । पूठिं बहु परिवार, खेलण लागउ खांति सु॥१॥ तिण अवसरि वनि तेण, वन-गज आयउ विलसतउ । जल थल लंध्या जेण, मातउ मयगल मद भरइ ॥२॥ नगर सेठ धन नाम, कन्या तेहनी क्रीड़ती। अकसमात अभिराम, गज सुडादंड मांहि ग्रही ॥३॥ [ सर्व गाथा १८] ढाल (२) पाइल री, अथवा--करइ विलाप मृगावती, कुयरी रोयइ आक्रंद करइ, मुनइ को मुकावइ । आंखे बिहुं आंसू भरइ, मुनइ को मुकावइ ॥१॥ मरू रे मरू मोरी मातजी, मुं० तुरत आवउ मोरा तातजी॥२॥ हा हा हाथी हुँ अपहरी, मुं० धीरिज हुं न सकु धरी मु० ॥३॥ केथि गई कुल देवता मु०, सकल कुटंब पाय सेवता मु०॥४॥ करउ रे कृपा अबला तणी मु, चतुर जायउ कोई चांद्रणी ॥५॥ आक्रंद कुमर सुण्या इसा मु०, कुण विलाप देखु किसा ॥६॥ ततखिण कुमर गयउ तिहां मु० जुवती रोती थी जिहां ॥७॥ कष्ट देखी कुमरी तणउ मु०, प्रगट थयउ करुणा पणउ मु० ॥८॥ कुमर विचार इसउ करइ मु०, उत्तम उपगार आदरइ मु०॥६॥ पर उपगार कीधा पखी मु, दस मास मात कीधी दुखी ॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy