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श्री सद्गुरुभ्योनमः समयसुन्दर रासत्रय प्रियमेलक-तीर्थ-प्रबन्धे सिंहलसुत चौपई
सोरठिया दूहा ६ प्रणमं सद्गुरु पाय, समरू सरसति सामिणी । दान धरम दीपाय, कहिसि कथा कौतक भणी ॥१॥ धरमां मांहि प्रधान, देतां रूड़ा दीसियई। दीघउ वरसीदान, अरिहंत दीक्षा अवसरई ॥२॥ उत्तम पात्र तउ एह, साधनइ दीजइ सूझतउ । लहियइ लाछि अछेह, अढलिक दान जउ आपियइ ।।३।। अति मीठा आहार, सखरा देज्यो साधनइ । सुख लहिस्यउ श्रीकार, फल बीजां सरिखा फलइ ॥४॥ प्रथिवी मांहि प्रसिद्ध, सुणियइ दान कथा सदा। प्रियमेलक अप्रसिद्ध, सरस घणुं सम्बन्ध छइ ॥५॥ सुणउ मिलई जउ संख, ए सुणतां जे उघस्यइ। उ माणस अगलिंच, के मुझ वचनि को रस नहीं ॥६॥
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