________________
( ६१ )
होने पर अब प्राणान्त करने को प्रस्तुत हूँ ! पुण्यसार ने कहामैं वही हूँ, पहचानो ! गुणसुन्दरी ने कहा -प्रियतम ! आप मुझे तोरण द्वार पर छोड़ आए तो मैंने आपको प्राप्त करने के लिए ही इतना प्रयास किया । अब मेरा उद्देश्य पूर्ण हुआ, मुझे स्त्री वेश दीजिये ! पुण्यसार ने घर से स्त्री की पौशाक मंगा कर दी जिसे धारण कर गुणसुन्दरी ने श्वसुरादि को नमस्कार किया ।
राजा के पूछने पर पुण्यसार ने सारा व्यतिकर बतलाया तो सुन कर सब लोग चकित हो गए । रत्नसार ने कहा- मेरी पुत्री की अब क्या गति होगी ? राजादि सब लोगों ने कहाउसका पति स्वाभाविक ही पुण्यसार हो गया, इसमें पूछना ही क्या है ? वल्लभी से छओं परिणीताओं को बुला लिया गया । सेठ ने पुण्यसार के लिए आठ महल प्रस्तुत कर दिये, जिसमें रहते हुए वह अपनी कुल मर्यादानुसार काल बिताने लगा ।
एक वार ज्ञानसागर नामक ज्ञानी गुरु के पधारने पर पुरन्दर सेठ भी पुण्यसार आदि परिवार को लेकर धर्मोपदेश सुनने गया । सद्गुरु की वैराग्यमय वाणी श्रवण कर बहुत लोग प्रतिबोध पाये । सेठ पुरन्दर के पूछने पर उन्होंने पुण्य-सार का पूर्वभव इस प्रकार बतलाया कि नीतिपुर में यह सरल स्वभावी कुलपुत्र था । संसार से विरक्त हो कर सुगुरु सुधर्म के निकट दीक्षित हुआ और संयम धर्म की आराधना करने लगा । वह दंश मच्छर आदि का उपसर्ग होने पर कायगुप्ति का पालन न कर कायोत्सर्ग में वार वार उड़ाता रहता । गुरु
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org