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________________ को प्रस्तुत हुआ, देवी ने कहा-वत्स तुम वृथा क्यों मरते हो ? रत्नवती तुम्हारी ही स्त्री होगी ! पुण्यसार ने कहा रत्नवती का विवाह परदेशी के साथ हो गया, अतः परस्त्री से मुझे क्या प्रयोजन ! देवी ने उसे धैर्य धारण कर भावी का विधान देखने का आदेश दिया। गुणसुन्दरी की छः मास की प्रतिज्ञा थी, अवधि बीत जाने पर भी जब पति को प्राप्त करने में असमर्थ रही तो उसने अग्नि-प्रवेश करने की तय्यारी की। सारे नगर में चर्चा होने लगी कि गुणसुन्दर सार्थवाह मरने को प्रस्तुत है। दर्शनार्थ लाखों व्यक्ति एकत्र हो गए। राजा ने गुणसुन्दर से पूछा- किसी ने तुम्हारी आज्ञा भंग की या कौनसा दुख उपस्थित हो गया, जिससे तुम अग्नि प्रवेश करते हो ! उसने कहा-इष्ट-वियोग के कारण मैं काष्ठभक्षण कर रहा हूँ ! राजा ने कहा-कोई सुज्ञ पुरुष इसे समझावे ! लोगों ने कहापुण्यसार के साथ इसकी मित्रता है, वही समझदार व्यक्ति है जो इसे मरने से रोक सकता है। राजा ने पुण्यसार को बुलाया। पुण्यसार ने उसके निकट जाकर पूछा कि किस दुख से तुम देह त्याग करने को प्रस्तुत हुए हो ? गुणसुन्दर ने कहाहृदय का दुख किसके आगे कहा जाय ? उसकी कोई सीमा नहीं ! पुण्यसार ने कहा-मैं भी तो कम दुखी नहीं, मेरी प्रियाएं वल्लभी में अपने पीहर में रहती हैं ! अब तुम भी अपना दुख कहो! गुणसुन्दर ने कहा--मेरा प्रिय यहीं गोपाचलपुर में हैं जिसकी शोध में मैं यहाँ आई और प्रतिज्ञा की अवधि पूर्ण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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