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________________ ( ५६ ) से जाकर कहा तो वे पति-विरह में रोने कलपने लगी। पिता ने आकर जामाता के भग जाने का सारा वृतान्त ज्ञात किया और नाम ठाम न जान सकने के कारण चिन्तातुर हुआ। गुणसुन्दरी ने नीचे जाकर दीवाल पर लिखे अभिलेख को पढ़ा और पति के गोपाचल निवासी होने का अनुसंधान पा लिया। उसने पिता से पुरुष वेश प्राप्त कर छः मास में पति को प्राप्त करने की प्रतिज्ञा पूर्वक विदा ली। पिता ने ऋद्धि-समृद्धि और नौकर कर्मचारी साथ दे दिये। वह गोपाचल आकर गुणसुन्दर कुमार के नाम से व्यापार करने लगी। थोड़े दिनों में गुणसुन्दर एक सफल व्यापारी के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया। एक दिन मार्ग में चलते हुए गुणसुन्दर को देख कर रत्नवती मुग्ध हो गई और पिता से प्रार्थना की कि गुणसुन्दर वर मुझे पसंद है, मेरा उसके साथ पाणिग्रहण करा दें। सेठ रत्नसार ने गुणसुन्दर के पास जाकर रत्नवती से पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की। गुणसुन्दर ने मन ही मन इस अयोग्य सम्बन्ध को विचार कर कहा कि-यह बड़ों के अधिकार की बात है, पिता दूर हैं अतः आप किसी अन्य कलावान पुरुष के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दें! रत्नसार ने कहा-मेरी पुत्री तुम्हें चाहती है तो मैं उसे दूसरे को कैसे दूँ ? __रत्नसार के आग्रह से गुणसुन्दर को रत्नवती के साथ पाणिग्रहण करना पड़ा । जब पुण्यसार ने सुना कि रत्नवती का विवाह हो गया तो वह कुलदेवी के समक्ष आत्मघात करने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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