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राजमान्य और प्रतिष्ठित हैं, मैं अपनी पुत्री आपको सहर्ष देता हूँ ! रत्नवती निकट ही थी उसने पिता की बात सुन कर कहामुझे अभि-प्रवेश कर जाना इष्ट है, पर पुण्यसार के साथ विवाह कदापि नहीं करूँगी ! पुरन्दर सेठ कन्या की बात सुनकर दंग रह गया उसने मन में सोचा इस धीठ बालिका को प्राप्त कर पुण्यसार को क्या सुख मिलेगा ?
रत्नसार ने पुरन्दर सेठ से कहा- यह अभी तक बच्ची और अज्ञान है, मैं समझा दूँगा ! आप निश्चित रहें, मैंने अपनी पुत्री आपके पुत्र को दी ! पुरन्दर सेठ अपने मित्रों के साथ घर लौटा और पुण्यसार से कहा- बेटा ! वह छोकरी टेढ़ी मेढ़ी बातें करती है अतः तुम्हारे योग्य नहीं हैं ! पुण्यसार ने कहाहमारे आपस में हठ पूर्वक विवाद हो गया है, पाणिग्रहण के पश्चात् सब ठीक होगा ! उसने अपना भविष्य सानुकूल बनाने के लिए कुलदेवी का आराधन करने का विचार किया और विधिपूर्वक उपवास कर के बैठ गया देवी ने प्रगट होकर पुण्यसार से कहा- तुम्हारा मनोवांछित सिद्ध होगा ! निश्चित होकर विद्याध्ययन करो ! उसने कलाभ्यास तो पूरा किया पर तरुण अवस्था में जुआरियों की संगत में पड़ने से जुओ का
व्यसन लग गया ।
एक दिन रानी का बहुमूल्य हार जो पुरन्दर सेठ के यहाँ धरोहर रूप में रखा था, पुण्यसार जुए में हार गया । राजा जब हार मंगाया तो सेठ ने घर में संभाला और न मिलने
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