________________
अध्ययन के हेतु पाठशाला में भरती किया गया। उसी नगर के धनवान सेठ रत्नसार की पुत्री रत्नवती भी पुण्यसार के साथ साथ पढ़ती और हठपूर्वक होड किया करती। एक दिन पुण्यसार ने उसे एकान्त में कहा-सुन्दरी ! तुम पुरुष की निन्दा मत किया करो, पुरुष की क्या बराबरी ? तुम्हें भी तो एक दिन पुरुष की पत्नी होना पड़ेगा! रत्नवती ने कहा-रे मूर्ख शेखर ! स्त्री बनूंगी किसी पुण्यवान की, तुम्हारी क्या बिसात है ? पुण्यसार ने कहा-भावी किसे दीखती है, अब तो मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती विवाह करूँगा! रत्नवती ने कहानिर्गुण ! तुम रोते ही रहोगे, प्रेम जबरदस्ती नहीं होता ! इस प्रकार दोनों के परस्पर विवाद में बोलचाल बढ़ गई।
पुण्यसार घर आया और अन्नपान त्याग कर चुपचाप सो गया। पुरन्दर सेठ ने चिन्ता का कारण पूछा तो उसने स्पष्ट कह दिया-यदि मेरा जीवितव्य चाहते हो तो आप रत्नसार की पुत्री से मेरा विवाह करादें ! सेठ ने कहा-बेटा ! अभी तक तुम बालक हो, विद्याभ्यास में मन लगा कर निपुण बनो, वयस्क होने पर हमें स्वयं तुम्हारा विवाह करने का उल्लास है ! पुण्यसार ने कहा-आप जैसा कहेंगे, करूगा पर रत्नवती से मेरी सगाई कर दीजिये, तब भोजन करूँगा ! सेठ ने उसे समझा बुझा कर भोजन कराया और स्वयं मित्रादि को साथ लेकर रत्नसार सेठ के यहाँ गया। रत्नसार ने स्वागत पूर्वक पुरन्दर सेठ से आगमन का कारण ज्ञात किया और यह कहा कि आप
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org