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गया। वह अप्रमत्त चारित्र पालन कर अनित्य भावना भाते हुए क्रमशः केवलज्ञान प्राप्त कर शिवशर्म को प्राप्त हुआ। ___ सं० १६६४ में आश्विन महीने में अहमदाबाद में कविवर समयसुन्दरजी ने इस व्यवहार शुद्ध विषये धनदत्त श्रेष्ठि चौ० की रचना की।
(५) पुण्यसार चौपई सार
भरतक्षेत्र में गोपाचल-ग्वालियर अत्यन्त सुन्दर नगर है ! वहाँ धर्मात्मा व सरल स्वभावी पुरन्दर सेठ निवास करता था जिसकी पत्नी पुण्यश्री पतिव्रता और गुणवती थी। सेठ के यहाँ सब कुछ होते हुए भी उसका घर पुत्रविहीन था और यही चिन्ता उसे कचौट रही थी। मित्रों ने सेठ को दूसरा विवाह करने की सलाह दी, पर पत्नी पर अटूट प्रेम होने के कारण वह इसके लिए प्रस्तुत न हुआ तब मित्रों ने इसी स्त्री से संतान हो, इसके लिए मंत्र-यंत्र, यक्ष पूजा, होम आदि उपाय करने का कहा। सेठ ने मिथ्यात्व दूषण से बचने के लिए कुलदेवी का आराधन किया। कुलदेवी ने प्रकट होकर पुत्र होने का वरदान दिया। पुण्यश्री के गर्भ में एक पुण्यवान जीव आकर अवतीर्ण हुआ। पुत्र जन्म होने पर सेठ ने बड़े भारी उत्सव पूर्वक उसका नाम पुण्यसार रखा । पाँच धायों द्वारा प्रतिपालन होकर जब पुण्यसार आठ वर्ष का हुआ तो उसे
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