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________________ धनदत्त की स्त्री ने उस धन में से राजा को भेंट द्वारा प्रसन्न कर भूमि खण्ड प्राप्त किया और उस पर सुन्दर महल, बाटिका, स्नानागार आदि बनवाये । वह सत्रागार (दानशाला) खोलकर उन्मुक्त दान देने लगी, साधु साध्वी व स्वधर्मी लोगों की भक्ति करती हुई निर्मलशील पालन करती थी। इधर धनदत्त चिरकाल विदेश में रहकर भी द्रव्योपार्जन न कर सका तो धैर्य धारण कर फटे हाल स्वदेश लौटा। लोगों के मुंह से धनदत्त की स्त्री की हवेली ज्ञातकर अपने घर पहुंचा तो प्रतोली रक्षक ने उसका प्रवेश निषिद्ध किया। धनदत्त ने सशंकित चित्त से प्रवेश करने का हठ किया तो सेठानी की आज्ञा से धनदत्त को सामने धूप में ले जाकर खड़ा किया। सेठानी ने अपने प्रियतम को पहिचाना और आदर सहित घर में बुलाकर सामने करबद्ध खड़ी हो गई। धनदत्त ने मन में स्त्री के शील पर शंका लाकर ऋद्धि समृद्धि का कारण पूछा। सेठानी ने सारा वृतान्त कहा और मित्र की साक्षी से सही वृत्त ज्ञात कर धनदत्त को अपार हर्ष हुआ। सेठानी ने नाई को बुलाकर सँवार कराई और धनदत्त को वस्त्राभरण से सुसज्जित किया। अब वे लोग आनन्दपूर्वक निवास करने लगे। ___ एक वार उस नगरी में साधु मुनिराज पधारे और उद्यान में ठहरे। उनका उपदेश श्रवणकर धनदत्त प्रतिबोध प्राप्त हुआ और पुत्र कलत्रादि को त्याग कर संयम मार्ग में दीक्षित हो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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