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व्यापारियों का साथ जहाँ ठहरा हुआ था, उद्घोषणा की। तब धनदत्त के मित्र ने तुरन्त पटह स्पर्श किया और बिजौरा के करण्डिये को लेकर राजा के सन्मुख भेंट किया। बिजौरे की चिकित्सा से राजकुमार स्वस्थ हो गया। राजा ने प्रसन्न होकर उस करण्डिये को मणिमाणिक और सोने से परिपूर्ण कर दिया और ससम्मान साथ वालों की जकात भी माफ कर दी ! सब लोग वहाँ से रवाने होकर क्रमशः अयोध्या पहुंचे।
धनदत्त की स्त्री ने देखा, साथ वाले सब लोग आ गए, पर मेरा पति नहीं आया, वह घर के द्वार पर अश्रुपूर्ण नेत्रों से खड़ी बाट देख रही थी। मित्र ने शीघ्रतावश आकर वह रत्नों. का भरा करण्डिया उसे दे दिया और उसका पति सकुशल है ! कहकर अपने घर की राह ली। धनदत्त की स्त्री ने घर में जाकर करण्डिये को खोला तो उसमें सोना, मणि, रत्न भरा था, वह देखते ही दुखी होकर सोचने लगी-मेरे पति ने अवश्य ही अपना नियम तोड़ा है अन्यथा न्यायपूर्वक इतना द्रव्य कहाँ से प्राप्त होता ? यह धन विष सदृश है, मेरे लिए धूलि है। ' थोड़ी देर बाद मित्र आया और उसने भौजाई को चिन्तित देखा तो कहा-धनदत्त सकुशल है, तुम चिन्ता क्यों करती हो ? जब उसने अपने दुख का कारण बताया तो मित्र ने द्रव्य प्राप्ति का सारा वृतान्त सुना दिया। धनदत्त की स्त्री प्रसन्न होकर धर्म पर और भी दृढ़ श्रद्धा वाली हो गई।
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