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________________ चित बताया तो सेठानी ने कहा-तुम दूध में भी जन्तु देखते हो! अपना क्या गया, इस कते सूत के पैसों से घर में सब्जी का खर्च निकल जाता है ! धनदत्त अपना हिसाब लेकर साथियों से जा मिला । साथी लोग व्यापार करते, पर धनदत्त का हाथ खाली था। माल-पत्र बेचकर साथी लोग स्वनगर जाने को तैयार हुए तो मित्र ने धनदत्त से कहा-देश चलो ! धनदत्त ने कहा-मैंने कुछ भी द्रव्योपार्जन तो किया नहीं। अतः अभी मैं नहीं चल सकंगा! मित्र ने कहा-यदि तुम न चल सको तो कोई वस्तु भी हमारे साथ भेजो; क्योंकि घर पर स्त्री बाट जोह रही है ! धनदत्त ने कहा मेरे पास पैसा नहीं, क्या भेजूं ? मित्र ने कहा-यहाँ बीजौरे बहुत ही उत्तम जाति के स्वादिष्ट और खूब सस्ते हैं और नहीं तो ये ही भेजो! धनदत्त ने मित्र की राय मानकर एक टोकरी में बहुत से बिजौरे भरकर मित्र के साथ भेज दिये। साथ वाले लोग प्रवहण में बैठकर रवाना हुए और किसी नगर के किनारे जाकर ठहरे। संयोगवश उस समय उस नगर का राजकुमार दाह ज्वर से पीड़ित हो गया। वैद्यों के सारे इलाज बेकार हुए तो राजवैद्य ने कहा-परदेशी बिजौरा यदि मिल सके तो इस रोग की वही अन्तिम चिकित्सा है, जिससे राजकुमार बच सकता है ! राजा ने सर्वत्र ढिंढोरा पिटवाया कि कहीं किसी के पास परदेशी बिजौरा हो तो दे ! उसे राजा मनोवांछित देगा। नगर में कहीं भी बिजौरा न मिला तो इस खयाल से कि-कोई परद्वीप से बिजौरे लाया होगा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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