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आदी नहीं होने से धनदत्त का व्यापार ठण्ढा पड़ गया और घर में धन का तोड़ा आ गया । उसने स्त्री से विदेश जाने की अनुमति माँगी तो उसने कहा- आप विदेश में भी अपने नियम का पालन करते रहें, मैं घर में बैठी अपना शील व्रत पालन करूँगी ! धनदत्त सथवाड़े के साथ रवाना हो गया । आगे चलकर एक गाँव में धनदत्त ने लोगों से पूछा कि यहाँ कोई व्यवहार शुद्धि नियम का पालन करने वाला हो तो बताओ, मैं उसके यहाँ नौकरी करना चाहता हूँ ! किसी ने धर्मात्मा सेठ का नाम बताया तो वह उसके वहाँ जाकर गुमास्ता रह गया । उस सेठ के घर गायें, भैंसे बहुत थी, जो जंगल में चरने जाती और पराये खेतों में प्रविष्ट होकर हरेभरे धान को उखाड़ कर खा जातीं । कृषक लोगों ने सेठ के सामने शिकायत की तो उसने कहा- ग्वालिये को मना कर देंगे ! सेठ ने उन्हें तो आश्वासन दे दिया, पर उसने ग्वालिये को कहा नहीं, क्योंकि गायों के मुफ्त का धान - घास चरके आने से उसके यहाँ दही, दूध, घी का ठाठ रहता था। धनदत्त ने सेठ के इस अशुद्ध व्यवहार को अनुभव कर उनकी नौकरी छोड़ दी और दूसरे गाँव चला गया। वहाँ उसने एक श्राविका के यहाँ नौकरी कर ली और उसका व्यापार देखने लगा । वह श्राविका निस्सन्तान होने पर भी लोभिणी थी, रात में वह बैठी - बैठी सूत कातती तो अपने घरका दीपक भी न जलाती और पड़ौसी के महल के प्रकाश का उपयोग करती । धनदत्त ने उसे अनु
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