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________________ ( ४७ ) अन्त में चंपक वहाँ से च्यवकर मनुष्य भव पाकर महाविदेह क्षेत्र में दीक्षा लेकर मोक्षगामी होगा । सं० १६६५ में अपने प्रिय शिष्य के आग्रह से कविवर समयसुन्दर ने जालोर में अनुकम्पा दान पर इस दृष्टान्तआख्यान की रचना की । (४) धनदत्त श्रेष्ठी चौपई सार शान्तिनाथ भगवान् को नमस्कार कर कविवर समय सुन्दर ने व्यवहार शुद्धि के विषय में धनदत्त श्रेष्ठी की चउपई प्रारम्भ करते हुए सर्वप्रथम श्रावक व्रतोपयोगी २१ गुणों को बतलाया है १ वाणिज्य व्यवसाय में न न्यून दे, न अधिक ले, अच्छी वस्तु को बुरी न कहे, बुरी को अच्छी न कहे, जिस समय देने का वायदा किया हो उसी समय दे, मिध्या भाषण न करे, यह प्रथम व्यवहार शुद्धि गुण है । २ पंचेन्द्रिय परिपूर्ण ३ शान्त प्रकृति, ४ लोकप्रिय, ५ वंचनारहित निष्कपट, ६ अक्रूर, पापभीरू, ७ अमायी, ८ उपकारी, ६ कुकर्म विरत, १० दयालु, ११ मध्यस्थवृत्ति, १२ शांत- दांत गुणी, १३ गुणरागी, १४ शोभन पक्ष, १५ दीर्घदर्शी, १६ विशेषज्ञ, १७ वृद्ध व बुद्धिमान पुरुषानुगामी, १८ माता-पिता गुरु के प्रति विनयशील, १६ कृतज्ञ, २० पर हितकारी, २१ लब्ध लक्ष । इन २१ गुणों में व्यवहारशुद्धि सर्व प्रधान है, इसके बिना सारे गुण व्यर्थ हैं। धोती Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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