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मानवश उसके वहाँ मांगने नहीं आते, उन्हें वह गुप्त रूप से सहायता पहुंचाता। उसने रोगियों के लिए चिकित्सालय खोल दिये। एक दिन एक वृद्धा को, जिसके क्षुधा के मारे अजीर्ण, शोथ आदि की भयंकर व्याधि हो गई थी, महासेन ने अपने घर लाकर सेवा सुश्रुषा कर स्वस्थ किया। महासेन की स्त्री गुणसुन्दरी ने भी दीन अनाथों की बड़ी सेवा सुश्रुषा की। इस बारहवर्षी दुष्काल के समय आश्रित लोगों को महासेन के यहाँ बड़ी शान्ति मिली और उसने सुकाल होने पर सत्कारपूर्वक उन्हें अपने घर भेज दिये।
केवली भगवान ने कहा-महासेन के भव में तुमने जो अनुकम्पा दान किया उसके प्रभाव से तुम इस भव में समृद्धिशाली चंपक सेठ हुए ! गुणसुन्दरी का जीव तिलोत्तमा हुई। दुष्काल के समय तुमने जिस वृद्धा की सेवा सुश्रुषा की वह उज्जैन में उत्पन्न हुई और इस भव में उसने तुम्हें पालपोष कर बड़ा किया। वंचनामति का जीव वृद्धदत्त हुआ, तुम्हारे उसने पांच रत्न लिए थे तो इस भव में उसके ६६ करोड़ के तुम स्वामी हुए। तुमने गत भव में कुल मद किया। अतः इस भव में दासी पुत्र हुए, तुमने वंचनामति को पूर्व भव में अपभ्राजित किया। अतः उसने तीन बार तुम्हें मारने का प्रयत्न किया । पूर्व भव का वृतान्त सुनकर चंपक सेठ का ह्रदय वैराग्य वासित हो गया। उसने तिलोत्तमा के साथ बड़े ठाठ से संयम धर्म स्वीकार किया। शुद्ध संयम पाल कर वह देवलोक में देव हुआ।
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