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'पांच रत्न गये ही समझना चाहिए। उसने कुछ सोच कर कपट• कोशा वेश्या का आश्रय लिया और उसे अपनी दुख गाथा कह · सुनाई । वेश्या ने उसपर दया लाकर के कहा-तुम निश्चित रहो,
मैं तुम्हारे रत्न निकलवा दूंगी ! वह अपने घर में गई और ‘उत्तम वस्त्र, मणि माणिक आभरण, कस्तूरी, कर्पूरादि बहुमूल्य
वस्तुएं एकत्र कर सबको पेटी में भर, ऊँट पर चढ़ कर वंचना•मति सेठ के घर गई । तीन चार सखियों के साथ सेठ के पास ‘जाकर उसने हाँफते हुए कहा-सेठ जी ! मेरी बहिन वसंतपुर
में मरणासन्न पड़ी है और मुझे शीघ्र बुलाया है, अतः मैं उससे 'मिलने जाती हूँ, आप मेरी माल-मता धरोहर रूप में रखिये, क्योंकि आप ही सर्वथा मेरे विश्वास भाजन हैं। यदि मेरी बहिन मर गई तो मैं भी अवश्य उसके साथ जल मरूंगी, यदि आपको मेरी मृत्यु के समाचार मिल जाय तो आप सारा धन (पुण्य कार्यों में ) खरच डालना! वंचनामति सेठ ने सोचा यह मर जायगी तो अच्छा हो जायगा, करोड़ों की जवाहरात मैं सहज में ही हजम कर सकंगा ! इतने ही में पूर्व संकेतानुसार महासेन आकर उपस्थित हो गया और धरोहर में रखे अपने 'पाँच रत्न माँगने लगा। सेठ ने वेश्या का माल हजम करने के
लोभ में आकर अपनी प्रतीति जमाने के लिए महासेन के पांच 'रत्न लौटा देना ही उचित समझा और तुरत चार रत्न निकाल के दे दिये। पाँचवाँ रत्न भी जो धनावह सेठ के यहाँ रखा हुआ था, पुत्र के द्वारा बदले में अपनी सम्पति को गिरवे रख
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