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क्यों बनाई ? जिससे चोर दब कर मर गया, अब इस डोकरी का कौन सहारा ? देवदत्त ने कहा राजन् ! मेरा क्या दोष मैंने तो सूत्रधार को पूरी मजूरी दी, कमजोर भीत का जिम्मे-- वार वह है ! राजा ने सूत्रधार को बुलाकर पूछा तो उसने कहा' मैं तो अच्छी तरह दीवाल बना रहा था पर देवदत्त की तरुण पुत्री सोलह शृंगार सज कर आ खड़ी हुई तो मेरी चंचल दृष्टि उस पर पड़ गई और दीवाल की इंटे शिथिल बन्ध वाली हो गई। देवदत्त की पुत्री को पूछने पर उसने कहा-मैं नग्न परिव्राजक को देख कर लज्जावश उधर चली गई। राजा ने परिव्राजक से बुलाकर पूछा कि तुम क्यों इस मार्ग में आए ? उसने कहा-आपके जंवाई ने घोड़ा दौड़ाया तो मैं क्या करूं ? राजा ने जंवाई से पूछा कि तुमने घोड़ा क्यों दौड़ाया। जंवाई ने देखा कि सब ने अपने माथे से आपत्ति उतार दी तो मुझे भी किसी युक्ति का आश्रय लेना चाहिए ! उसने कहा कि मैं तो कर्म-विधाता की प्रेरणा से आया मेरा क्या दोष ? राजा ने मंत्री से कहा मंत्री ! विधात्रा को शीघ्र बुलाओ ! मैं अन्याय नहीं सहन कर सकता! प्रधान ने कहा-आपके तेज प्रताप से डर कर काँपती हुई वह कही भग गई है, मैंने सब जगह शोध के लिए पुरुष भेजे पर मिली नहीं, अब तो दूसरे दिन खबर लगेगी ! राजा ने कहा-कोई बात नहीं आज देर भी हो गई, कल पर बात, कोई जल्दी थोड़े ही है !
महासेन ने देखा इस राजा के न्याय के भरोसे तो मेरे
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