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( ३६ ) पूछ लेना चाहिए ! सुभटों ने वृद्धदत्त से पूछा तो उसने कहासत्वर उसका काम तमाम कर डालो! इधर खटमलों के उपद्रव से जग कर चंपक सेठ, द्वार खुला देखकर वहाँ से उठ अपने महल में जाकर प्रिया के पास सो गया। सुभटों ने जब चंपक को न देखा तो समझा शरीर चिन्ता के लिए गया होगा, अभी आ जायगा ! वे लोग इतस्ततः छिप गए और तय कर लिया कि सब लोग उसके आने पर एकाएक आकर टूट पड़ेंगे ! इधर वृद्धदत्त के मन में तालावेली लगी हुई थी ही, वह देखने के लिए आया तो वहाँ किसी को न देखकर स्वयं उस स्थान पर सो गया। थोड़ी देर में सुभटों ने सोये हुए वृद्धदत्त को चंपक के भरोसे एक साथ मिलकर वार कर मार डालो और कुएँ में फेंक दिया एवं प्रातःकाल इनाम पाने की आशा में हर्षित होकर वे अपने घर चले गये। प्रातःकाल जब वृद्धदत्त की लाश को कुएँ में तैरते देखा तो उन्हें बड़ा भारी पश्चात्ताप हुआ। साधुदत्त ने जब भाई की मृत्यु सुनी तो वह भी छाती फट कर मर गया। बारह दिन होने पर भाई और पुत्र के अभाव में सब लोगों ने वृद्धदत्त सेठ का उत्तराधिकारी चम्पक सेठ को बना दिया, जिससे वह ६६ कोटि स्वर्णमुद्राओं का स्वामी हो गया।
चम्पक सेठ ने ६६ कोटि स्वर्णमुद्राएँ हस्तगत करके उज्जैन से वृद्धा माता को भी १४ कोटि स्वर्णमुद्राओं के साथ चम्पापुरी बुला लिया। उसने अपने बुद्धि बल और पूर्व पुण्य से इतना
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