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होते ही फिर निकल पड़ें! चम्पक ने अपनी स्त्री का यह कथन स्वीकार कर लिया । अब वह दिन भर मित्रों के साथ निश्चित घूमता रहता । वृद्धदत्त ने एक दिन फिर अपनी स्त्री से कहा- तुमने मेरा कथन नहीं किया ? उसमें कहा - मेरा क्या दोष । वह अपने घर खाना पीना तो दूर, दिन भर में आता ही नहीं है ! वृद्धदत्त यह सुनकर दूसरी घात सोचने लगा । उसने विश्वासी सुभटों को बुलाकर कहा- तुम लोग मौका पाकर चम्पक सेठ को मार डालो ! काम हो जाने पर प्रत्येक को सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं से पुरष्कृत करूँगा । सुभट लोग जब घात में रहने लगे तो चंपक सेठ ने अपने साथ शस्त्रबद्ध अंगरक्षक रखना प्रारम्भ कर दिया । छः मास बीत जाने पर भी सेठ के सुभटों को कोई अवसर न मिला । एक दिन रात्रि के समय राही रूप धारण कर खेलने वाले रावलियों का खेल हो रहा था तो चम्पक भी वहाँ बैठ गया । चम्पक के अगरक्षक रात्रि में घर के निकट निर्भय ज्ञात कर अपने घर चले गये । खेल समाप्त होने पर चम्पक अकेला घर आया, उसकी आँखें घुल रही थी । अतः प्रतोली में बिछे हुए तापड़ पर सो गया, उसने सोचा रात के समय कोलाहल कर क्या किंवाड़ खुलाना है ! उसे सोते ही नींद आ गई । वृद्धदत्त के सुभटों ते उसे सोते हुए देखा और मारने को प्रस्तुत हुए पर चंपक के भाग्य बल से उन्होंने फिर सोचा कि बहुत दिनों की पुरानी आज्ञा है, सेठ का जंवाई ही है अतः सेठ को फिर से
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