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आपका पत्र, इसी के अनुसार मैंने सारा काम किया है, इसमें मेरा कोई दोष नहीं ! सेठ ने सारी करतूत तिलोत्तमा की ज्ञात कर चुप्पी साध ली । चम्पक का ब्याह चंपापुर में हुआ, ज्ञात कर सारे बाराती उज्जैन चले गये और जाकर बूढ़ी माँ से चम्पककुमार के ब्याह की बधाई दी ।
अब चम्पक सेठ आनन्दपूर्वक चम्पानगरी में रहने लगा । एक बार सीयाले की रात में तिमंजिले महल में अपने पति के साथ सोई हुई तिलोत्तमा किसी कार्य से नीचे उतरी तो दुमंजिले में उसने वृद्धदत्त द्वारा अपनी स्त्री को कहते 'सुना किलिखा तो कुछ और ही था और हमारे कर्म दोष से हो गया कुछ और ही ! इस जंवाई की जात-पाँत का कोई पता नहीं ओर यहाँ रहते ये हमारे घर का स्वामी हो जायगा । अतः पुत्री का मोह त्याग कर जंवाई को विष देकर मार्ग लगा दो ! पति के आग्रह से कौतिगदे ने उपर्युक्त बात स्वीकार कर ली ।
तिलोत्तमा ने जब यह बात सुनी तो वह विचित्र धर्म संकट में पड़ गई । यदि वह पति से कहती है तो पिता की जान को खतरा और न कहे तो पति के मारे जाने का भय । इधर बाघ और उधर कुआ देखकर उसने पति से कहा- प्रियतम ! शकुन निमित्त के बल से मुझे आप पर दो महीना भारी संकट मालूम देता है अतः आप कृपा कर इस घर में भोजन पानी कुछ भी लें यावत् पान तक न खाएँ । दिन भर मित्रों के यहाँ खान पान कर घूमते रहें एवं रात्रि के समय यहाँ आवें और सुबह
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