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छोड़ भागा और अपने साथ से जा मिला। साथ वालों के पूछने पर कहा कि पुष्पश्री देह-चिन्ता के बहाने कहीं भग गई, मैं ने उसकी बहुत खोज की पर पता नहीं लगा अब दाणी ( जकात के अधिकारी ) लोग अपने को आ घेरेंगे । अतः शीघ्र आगे बढ़ो ! वृद्धदत्त ने कंपिला में त्रिविक्रम के यहाँ कहला दिया कि पुष्पश्री कहीं भग गई, उसकी वाट न देखें! इसके बाद वृद्धदत्त निश्चिन्त होकर चम्पापुरी अपने घर लौट आया।
इधर वृद्धदत्त के द्वारा मार्मिक चोट खाई हुई दासी अधिक देर जीवित न रह सकी। उसने मरते मरते सुन्दर और स्वस्थ बालक को प्रसव किया। थोड़ी ही देर में उज्जैन की ओर आती हुई एक वृद्धा ने यह स्वरूप देखा तो उसने समझा किसी दुष्ट ने वैर वश यह चाण्डाल कर्म किया है, यदि चोर मारते तो इसके अंग पर एक भी आभरण नहीं बच पाता ! उसने दयापूर्वक नवजात बालक को ले लिया और आभूषणों की गठड़ी बाँध कर उज्जैन ले आई। उसने राजा के समक्ष आभूषण और उस सुन्दर बालक रखते हुए सारा वृतान्त कह सुनाया। राजा ने इसके लिए धन्यवाद देते हुए वृद्धा को आदेश दिया कि बालक का भरण-पोषण सुचारु रूप से करना ! तदनन्तर राजा ने पुष्पश्री की देह का अंतिम संस्कार भी राजपुरुषों द्वारा करवा दिया।
वृद्धा ने बालक को अपने घर ले जाकर जन्मोत्सव मनाया और चम्पक वृक्ष के नीचे प्राप्त होने से उसका नाम भी चम्पक
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