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( ३२ ) और पुष्पवती दासी का पता लगा लिया और सेठ से मित्रता गांठने के लिए आवश्यक वस्तुएं बिना मूल्य उधार देना प्रारम्भ कर दिया। सेठ त्रिविक्रम ने भी उसके भोजनादि का प्रबन्ध अपने यहाँ कर दिया। वृद्धदत्त ने त्रिविक्रम के परिवार को खुले हाथ उपहारादि देकर अपने वश में कर लिया। वृद्धदत्त ने कुछ दिन बाद व्यापार सलटा कर चम्पानगर लौटने की तय्यारी कर त्रिविक्रम से अन्तिम जुहार करते हुए बिदा माँगी। त्रिविक्रम ने कहा-चार महीनों की प्रीति अविचल रहे और जो कुछ ऊंट, बैल. घोड़ा आदि सामग्री चाहिए, निसंकोच ले. जाइये ! सेठ वृद्धदत्त ने कहा-आपकी कृपा से हमारे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है पर आपका इतना ही आग्रह है तो मार्ग में भोजनादि की सुविधा के लिए पुष्पश्री दासी को हमारे साथ भेज दीजिए ! घर पहुँचते ही मैं इसे आपके पास सुरक्षित लौटा दूंगा! त्रिविक्रम ने कहा-यद्यपि इसका विरह असह्य है और इसके बिना घर में भी नहीं सरता, फिर भी आपका कथन तो रखना ही पड़ेगा ! ___ वृद्धदत्त ने वहिली (वाहन) में पुष्पश्री को बिठा कर प्रयाणः किया। जब ये लोग उज्जैन के निकट पहुँचे तो जकात से बचने के बहाने सारे साथ को आगे रवाने कर दिया और स्वयं पुष्पश्री के साथ रहा । उसने एकान्त पाकर पुष्पश्री को वहिली. से नीचे गिरा कर लातों की निर्दय मार से मरणासन्न कर दिया। जब वह अचेत हो गई तो वृद्धदत्त उसे मृतक समझ कर
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