________________
( ३१ ) कि मुझे एक से अधिक दूसरा जीव कभी भी शिकार में हाथ नहीं लगता ! मंत्री ने कहा-तुम्हें हाथी मिले तो उसे ही पकड़ना अन्यथा दूसरे जीव पर हाथ न डालना! विधाता ने देखा कि यदि इन दोनों को चंदन और हाथी नहीं प्राप्त कराती हूँ तो मेरा लेख झूठा हो जाता है, अतः वह प्रतिदिन एक भारी चंदन और एक हाथी दोनों को प्राप्त कराने लगी। मंत्री उन दोनों से प्रतिदिन उनकी भारी व शिकार लेकर संग्रह करता गया। कुछ अरसे में हजार हाथी और चंदन के मूल्य से करोड़ों रुपये एकत्र कर लिये। इस प्रकार उसने महर्द्धिक हो जाने पर सेना एकत्र की व मथुरा पर चढ़ाई कर शत्रुओंको मार भगाया और राजकुमार को अपना पैतृक राज्य दिला दिया। जिस प्रकार मंत्री ने उद्यम का आश्रय लेकर विधाता के लेख में मेख मार दी इसी प्रकार मैं भी देखना साधुदत्त भाई ! देववाणी को अन्यथा करूँगा! क्योंकि मेरी लक्ष्मी का भोक्ता कोई और ही व्यक्ति हो जाय, यह मैं सहन नहीं कर सकता ! (मैं पुष्पवती दासी को ही समाप्त कर दूंगा तो उसका पुत्र मेरे धन का स्वामी कैसे होगा ? ) __ अब वृद्धदत्त, अपना कार्य सिद्ध करने के हेतु ऊंठ, गाडी और बैलों पर प्रचुर माल भर के कंपिलानगरी में गया और एक दुकान लेकर व्यापार करने लगा। वह अपनी दुकान में सब तरह की वस्तु रखता और नगद दाम से माल बेचता। उसने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए त्रिविक्रम सेठ
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
www.jainelibrary.org