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ली। थोड़ी देर में तिमंगली मत्स्य ने आकर पेटी को अपने मुँह में रख लिया। इधर रावण ने ७ दिन की अवधि बीत जाने पर ज्योतिषी के सामने तिमंगली मत्स्य ( देवी ) को बुलाकर जब पेटी को खोला तो उसमें वर-कन्या को विवाहित देखकर उनसे साश्चर्य सारा वृतान्त ज्ञात किया और ज्योतिषी को धन्यवाद देकर विदा किया और वर कन्या को कुशल क्षेम पूर्वक अपने अपने पितृगृह पहुंचा दिया ।
वृद्धदत्त ने साधुदत्त से उपर्युक्त दृष्टान्त सुनाकर कहा भाई ! तुम भोले हो ! उद्यम के आगे भावी कुछ नहीं, मैं भी तुम्हें एक दृष्टान्त उद्यम पर सुनाता हूँ !
उद्यम से रख में मेख - दृष्टान्त
मथुरा नगरी में हरिबल राजा राज्य करता था । उसके. सुबुद्धि नामक मंत्री था । संयोगवश राजा और मंत्री के हरदत्त और मतिसागर नामक पुत्र एक साथ उत्पन्न हुए । मंत्री ने अर्द्ध. रात्रि के समय महल से निकलते हुए एक स्त्री को देखा । मंत्री ने उसका हाथ पकड़ कर पूछा कि तुम कौन हो ! उसने कहा मैं विधाता हूँ और छट्ठी रात्रि का लेख लिख कर आई हूँ ! क्या लिखा है ? पूछने पर उसने कहा - राजकुमार शिकार में एक ही जीव ( पशु-पक्षी ) प्राप्त करेगा और मंत्रिपुत्र अपने मस्तक पर एक ही भारी लावेगा ! मंत्री ने कहा- मुग्वे ! कुल घराने के अयोग्य यह क्या लिखा ? उसने कहा विधि के विधान को
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