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भावी न टलसकने पर दृष्टान्त
राजा ने उसके
चित्रपट देकर
रत्नस्थल नगर में रतनसेन नामक राजा अत्यन्त प्रतापी था जिसका पुत्र रत्नदत्त ७२ कलाओं में निपुण और सुन्दर था ।' जब राजकुमार तरुणावस्था को प्राप्त हुआ तो योग्य कन्या की गवेषणा के लिए जन्मपत्री व चारों दिशाओं में सोलह-सोलह व्यक्तियों को भेजा । अतः: सभी लोग योग्य कन्या न पाकर वापस लौट आये, पर जो उत्तर दिशा में गये उन्होंने गंगातटवर्त्ती चन्द्रस्थल के राजा चन्द्रसेन की पुत्री चन्द्रवती को कुमार के सर्वथा योग्य ग्यात कर सम्बन्ध पक्का कर लिया । राजा चन्द्रसेन ने जब उनका लग्न मुहूर्त्त दिखाया तो १६ दिन के बाद ही निकला। मंत्री ने कहा घड़ी भर में योजन भूमि उल्लंघन करने वाले ऊँट को तय्यार कर तुम लोग जाओ, सात दिन जाने और सात दिन आने में लगेंगे, तुरंत वर को ले आवो ताकि विवाह का मुहूर्त्त साथ लिया जाय ! वे पुरुष रत्नस्थल में आये और राजाने तुरन्त कुमार को चन्द्रस्थल के लिए रवाना कर दिया । इधर जो घटना हुई वह बतलाता हूँ ।
अब
समुद्र के बीच चित्रकूट पर्वत पर लंका नामक समृद्धिपूर्ण नगरी का स्वामी त्रिखण्डाधिप रावण राज्य करता था । एक. दिन उसकी सभा में एक नैमित्तिक आया, जिसे रावण ने पूछा कि मेरे जैसे शक्तिशाली का भी कोई घातक होगा ? यदि भविष्य जानते हो तो बतलाओ ! ज्योतिषी ने कहा- अयोध्या
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