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(३) चंपक सेठ
कविवर समयसुन्दर जालोर मण्डण पार्श्वनाथ और स्वर्णगिरि के भूषण महावीर भगवान को नमस्कार कर अपने माता पिता व दीक्षा-विद्या गुरु को नमनपूर्वक दान धर्म की विशेषता बताने के लिए चम्पकसेठ की चौपाई निर्माण करते हैं ।
पूर्व देश में चम्पापुरी नामक समृद्धिशाली नगरी थी जहाँ के ८४ चौहटे, सतमंजिले आवास एवं नगर के इतर वर्णन में कवि ने २३ गाथाओं की ढाल लिखी है। इस नगर में राजा सामन्तक राज्य करता था । इसी चम्पापुरी में वृद्धदत्त नामक एक धनवान व्यापारी रहता था जिसके पास ६६ करोड़ स्वर्णमुद्राएं थीं, पर वह एक पैसा भी खरच न कर कोठे में बन्द कर आठों पहर उसकी रक्षा करता था । सेठ के कौतुकदेवी स्त्री और तिलोत्तमा नामक सुन्दर पुत्री थी । उसके साधुदत्त नामक भाई था, जो सेठ के साथ ही रहता था । वृद्धदत्त सेठ घी, धान्य आदि का व्यापार करने के साथ खेती-बाड़ी, लेन-देन का भी धन्धा करता था पर उसकी शोषक वृत्ति इतनी प्रबल थी कि लोग प्रभात बेला में उसका नाम तक लेना पसन्द नहीं करते । एक दिन स्वर्णमुद्राओं की रक्षा में सोये हुए सेठ को अर्द्धरात्रि के समय एक देव ने आकर चेतावनी दी कि सेठ ! तुम्हारे धन का भोगने वाला उत्पन्न
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