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________________ ( २३ ) वल्कलचीरी ने एक कुटी में जाकर तापसोपगरणों को देखा और उनका प्रतिलेखन करते हुए ऊहापोह पूर्वक जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त किया। उसे अपने मनुष्य और देव के भव स्मरण हो आये। उसे साधुपन के आदर्शका ध्यान हुआ और उच्च आत्म भावना भाते हुए लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। देवताओं ने प्रगट होकर साधुवेश दिया। वल्कलचीरी केवलीने प्रत्येकबुद्ध होकर पिता व भाई को प्रतिबोध दिया और स्वयं अन्यत्र विहार कर गए। राजा प्रसन्नचन्द्र वैराग्यपूर्ण हृदय से पोतनपुर लौटे, उनके हृदय में संसार त्याग की प्रबल भावना थी ! __भगवान् महावीर ने कहा-श्रेणिक ! एक दिन हम पोतनपुर के उद्यान में समौसरे प्रसन्नचन्द्र वंदनार्थ आया और उपदेश श्रवणानन्तर अपने बाल पुत्र को राजगद्दी पर स्थापित कर स्वयं हमारे पास दीक्षित हो गया । और अब उग्र तपश्चर्या द्वारा अपनी आत्मा को तपसंयम से भावित करता है। जब भगवान ने इतना कहा तो गगनांगण में देव-दुदुभि सुनाई दी और देवताओं का आगमन हुआ। श्रेणिक द्वारा इसका कारण पूछने पर भगवानने फरमाया कि प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। श्रेणिक राजा ने साश्चर्य राजर्षि की प्रशंसा करते हुए पुनः पुनः वन्दन किया। अन्त में कविवर समयसुन्दर वल्कलचीरी मुनिराज के गुण गाते हुए मोक्ष सुख की कामना करते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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