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________________ ( २२ ) में एक मात्र पुत्र का ही आधार था। पुत्र की चिन्ता में राजर्षि झुरते हुए अन्धे हो गए। अन्तमें जब दूसरे तापसों के मुखसे वल्कलचीरी के पोतनपुर पहुँचने के समाचार उन्हें ज्ञात हुए तो कुछ सन्तोष अनुभव किया । वृद्ध तपस्वी के लिये अन्य तापस लोग वनफल आदि पहुंचा कर सेवा सत्कार कर देते थे। वल्कलचीरी को पोतनपुर में बारह वर्ष बीत गए, एक दिन रात्रि के समय वह जगकर अपना आश्रम जीवन स्मरण करने लगा। उसे अपने पिता की याद आ गई और वह अपने को कोटिशः धिक्कारता हुआ पश्चाताप करने लगा। उसने पुनः पिता की सेवा में आश्रम जाने का अपना निश्चय, भाई प्रसन्नचन्द्र के समक्ष व्यक्त किया। दोनों भाई आश्रम के पास पहुंच कर घोड़े से उतर पड़े। वल्कलचीरी आश्रम की सारी वस्तुओं को दिखाते हुए भाई को कहने लगा-यहाँ मैं वनफल इन्हीं वृक्षों से प्राप्त करता, इन्हीं भैंसों को दूह कर पिता-पुत्र हम दूध पीते। इन्हीं मृगशावकों के साथ मैं खेलता हुआ समय निर्गमन करता था। इस प्रकार आश्रम की शोभा देखते हुए दोनों भाई राजर्षि सोमचन्द्र के पास जाकर चरणों में गिरे। और अपने पुत्रों का परिचय प्राप्त होते ही राजर्षि का हृदय हर्षप्लावित हो गया और हर्षाश्रुओं के प्रवाह से उसके आँखों के पटल दूर हो गए। वे लोग परस्पर सारी बीती बातें और कुशलप्रसन्न पूछने लगे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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