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( २१ ) प्रसन्नचन्द्र भाई के आश्रम से निकल कर नगर न पहुँचने के कारण बड़ा चिन्तित हुआ और शोकपूर्ण हृदय से रात्रि व्यतीत करने लगा। जब उसने गीत वाजिन सुने तो कहा- मेरे शोकपूर्ण वातावरण में यह जिसके घर गीत वा जित्र हो रहे हैं, उसे पकड़कर लाओ! राजपुरुषों ने वेश्या को राजा के सामने उपस्थित किया । वेश्या ने मधुरवाणी से कहा-राजन् ! ज्योतिषी के वचनानुसार हमारे घर में अनाहूत आये हुए ऋषिपुत्र के साथ मैंने अपनी पुत्री का विवाह किया है। मेरे घर में उसी के सोहले गीत-वाजित्रादि मंगलकृत्य किये जा रहे हैं। मुझे श्रीमान के चिन्ता-शोक का बिल्कुल ज्ञान नहीं था, अतः क्षमा करें! राजाने अपने पास रहा हुआ चित्र दिखाकर विश्वस्त व्यक्तियों को उसे पहचानने के लिए भेजा। और अपने भाई की प्रतीति होने पर महोत्सवपूर्वक गजारूढ़ कर अपने पास राजमहल में बुला लिया। राजाने उसे खान-पान रीति-रिवाज और गृहस्थ के सारे शिष्टाचार सिखाये और कई सुन्दर कन्याओं से विवाह करवा दिया। एक बार बाजार में वल्कलचीरी के साथी रथी को चोर से प्राप्त आभरणों को बेचते हुए, आभरणों के वास्तविक स्वामी ने देखा और उसे गिरफ्तार करवा दिया तो वल्कलचीरी ने अपने मित्र रथी को पहिचान कर छुड़वा दिया। ___ इधर आश्रम से वल्कलचीरी के एकाएक गायब हो जाने से राजर्षि सोमचन्द्र को अपार दुख हुआ। उनके तो वृद्धावस्था
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