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________________ ( २० ) संभालो, क्योंकि यहाँ इसके बिना तुम्हें खान-पान या ठहरने को स्थान तक नहीं मिलेगा। ___ वल्कलचीरी पोतनपुर नगर की शोभा देखता हुआ इतस्ततः घूमने लगा। वह वहाँ की ऋद्धि समृद्धि देख कर मन में करता इस आश्रम के लोग बड़े सुखी प्रतीत होते हैं। वह लोगों को देखकर तात ! तात! कहता हुआ अभिवादन करता तो सब लोग उसके भोलेपन की बड़ी हंसी उड़ाते। उसे घूमते घूमते संध्या हो गई पर कहीं रहने को आश्रय नहीं मिला अन्त में वह एक वेश्या के यहाँ जा कर उसे बहुतसा द्रब्य देकर उसके यहाँ ठहरा। वेश्या ने नापित को बुलाकर उसके लम्बे लम्बे नख उतरवाये, जटाजूट को खोलकर सुगंधित तेल और कंघे द्वारा सुसंस्कारित किए। स्नानादि से उसका शरीर निर्मल कर सुसज्जित किया। वल्कलचीरी के ना ना करने पर वेश्या ने कहा-यदि यहाँ रहना हो तो हमारा अतिथि सत्कार चुपचाप जैसे कहते हैं, स्वीकार करो। वेश्या ने उसे वस्त्र आभरण पहिना कर अपनी पुत्री के साथ उसका पाणिग्रहण करा दिया। विवाह के सारे रीति रिवाज देखकर और वेश्यापुत्री के साथ शयनगृह में जाते हुए भोले ऋषिकुमार ने पोतनपुर के अतिथि सत्कार को बड़ा ही आश्चर्यजनक अनुभव किया । इधर जो वेश्याएँ तापस रूप में आश्रम जाकर वल्कलचीरी को बहका लाई थी, वे सोमचन्द्र के भय से भग कर राजा के. पास आई और सारा वृतान्त उससे कह सुनाया। राजा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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