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कार्य करने में अपना जीवन सफल किया। जिनालय निर्माण, जीर्णोद्धार, शास्त्र लेखन, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका की भक्ति, औषधालय निर्माण, दानशाला तथा साधारण द्रव्य इत्यादि दसों क्षेत्रों में प्रचुर द्रव्य व्यय किया। दिनोंदिन अधिकाधिक धर्म ध्यान करते हुए गृहस्थ धर्म का चिरकाल पालन कर आयुष्य पूर्ण होने पर समाधिपूर्वक मरकर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष पद प्राप्त करेगा ।
(२) वल्कलचीरी भगवान पार्श्वनाथ, सद्गुरु और सरस्वती को नमस्कार कर पापों का नाश करने के हेतु कविवर समयसुंदर वल्कलचीरी केवली की चौपई का निर्माण करते हैं। - मगध देश का राजगृह नगर अत्यन्त समृद्धिशाली था। यहाँ भगवान महावीर ने १४ चातुर्मास किये। यहीं धन्ना, शालिभद्र, नन्दन मणिहार, कयवन्ना सेठ, जंबू स्वामी, मेतार्य मुनि, महाराजा श्रेणिक, अभयकुमार आदि महापुरुष हुए हैं, गौतम स्वामी की निर्वाणभूमि भी यही है। एक बार भगवान महावीर राजगृह के गुणशील चैत्य में समवसरे। वनपालक से वधाई पाकर श्रेणिक महाराजा भगवान को वन्दनार्थ चला । उसने मार्ग में एक महामुनि के दर्शन किये जो एक पैर के सहारे
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