________________
( १३ )
सत्कारपूर्वक अन्न जलादि वहोराया जिसके पुण्य प्रभाव से वह मर कर महर्द्धिक नागकुमार देव हुआ। धनदत्तके भी भावपूर्वक मुनिराज को सेलड़ी ( ईख ) का रस दान करते हुए तीन वार भाव खण्डित हुआ और मर कर तुम सिंहलसिंह हुए । तीन वार परिणाम गिरने से तुम समुद्र में गिरे फिर वहराते रहने से स्त्रियों की प्राप्ति हुई । तुम्हें कुरूप वामन करने का मेरा यह उद्देश्य था कि अधम पुरोहित तुम्हें पहिचान कर मारने का प्रयत्न न करे । सिंहलसिंह कुमार को अपना पूर्व भव सुनकर जातिस्मरण ज्ञान हो आया जिससे अपना पूर्व भव वृतान्त उसे स्वयं ज्ञात हो गया । राजा ने पुरोहित पर कुपित हो उसे मारने की आज्ञा दी ; कृपालु कुमार ने उसे छुड़ा दिया ।
अब कुमार के हृदय में माता-पिता के दर्शनों की उत्कण्ठा जागृत हुई, उसने स्वसुर से विदा मांगी और उड़नखटोली पर आरूढ़ हो चारों पत्नियों को चारों ओर तथा मध्य में स्वयं विराजमान हो आकाशमार्ग से सत्वर अपने देश लौटा । माता-पिता के चरणों में उपस्थित होकर उन सबका वियोग दूर किया । चारों बहुओं ने सासू के चरणों में प्रणाम कर आशीर्वाद पाया । राजा ने कुमार को अपने सिंहासन पर अभिषिक्त कर स्वयं योग-मार्ग ग्रहण किया ।
राजा सिंहल सुत ( सिंह ) श्रावक व्रत को पालन करता हुआ न्याय पूर्वक राज्य करने लगा । उसने उत्साह पूर्वक धर्म :
Jain Educationa International
1
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org