SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२ ) 'उल्लासरहित साले ने कहा-साँप लो ! कुमार ने कुएँ के साँप को याद किया, उसने आते ही कुमार को डस दिया, जिससे वह मूर्छित हो गया। अब वे सब कन्याएँ मरने को उद्यत होकर कहने लगीं-हम भी इसके साथ ही मरेंगी, हमें इन्हीं का शरण है। इतने में देव ने प्रगट होकर कुमार को अपने असली रूप में प्रगट कर दिया, सब लोग इस नाटकीय पटपरिवर्तन को देखकर परम आनन्दित हुए। कुसुमवती को अपार हर्ष था, अपने पति को पहचान कर चारों पत्नियाँ विकसित कमल की भाँति प्रफुल्लित हो गई। अब कुसुमवती का व्याह बड़े धूमधाम से हुआ और कुमार सिंहलसिंह अपनी चारों पत्नियों के साथ आनन्दपूर्वक काल निर्गमन करने लगा। कुमार ने देव से 'पूछा-तुम कौन हो और निष्कारण मेरा उपकार कैसे किया ? देव ने कहा-मैं नागकुमार देव हूँ, मैंने ही तुम्हें समुद्र में डूबते को बचाकर आश्रम में छोड़ा, तुम्हें कुब्जे के रूप में परिवर्तन करने वाला भी मैं हूँ। तुम्हारे पूर्व पुण्य तथा प्रबल स्नेह के कारण मैं तुम्हारा सान्निध्यकारी बना। कुमार के पूछने पर देव ने पूर्व भव का वृतान्त बतलाना प्रारम्भ किया। पूर्व जन्म वृत्तान्त धनपुर नगर में धनंजय नामक सेठ और उसके धनवती नामक सुशीला पत्नी थी। एक बार मासक्षमण तप करने वाले त्यागी वैरागी निग्रन्थ मुनिराज के पधारने पर धनदेव ने उन्हें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy