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रतनपुर नगर पहुँचा, वहाँ उसने राजकुमारी रत्नवती से व्याह' किया फिर वहाँ से विदा होकर आते समय मार्ग में पापी पुरोहित ने कुमार को समुद्र में गिरा दिया।" उसने पोथी बाँधते हुए कहा आज का सम्बन्ध इतना ही है, आगे का सुनना हो तो कल आना। रत्नवती ने उत्सुकतावश कहा“हाथ जोड़ती हूँ पण्डित आगे का वृतान्त कहो।” इस प्रकार दूसरी भी सब लोगों के समक्ष बोल गयी।
दूसरे दिन प्रातःकाल फिर लाखों की उपस्थिति में वामन ने पुस्तक वाचन प्रारम्भ किया। उसने कहा-कुमार को जल में गिरते हुए किसी ने ग्रहण कर लिया फिर उसे तापस ने अपनी कन्या रूपवती को परणाई। वे दोनों दम्पति खटोलड़ी में बैठ कर यहाँ आये, कुमार जल लेने के निमित्त कुएँ पर गया जिस पर वहाँ साँप ने आक्रमण किया इस प्रकार यह तीनों बातें हुई। वामन के चुप रहने पर रूपवती से चुप नहीं रहा गया, उसने भी आगे का वृतान्त पूछा । वामनने कहा-राजन् ! अब तीनों स्त्रियाँ बोल चुकीं मुझे कुसुमवती देकर अपना वचन निर्वाह करो। राजा ने वचन के अनुसार घर आकर चौंरी मांडकर विवाह की तैयारी की। वामन और राजकुमारी के सम्बन्ध से खिन्न होकर औरतों के गीत गान में अनुद्यत रहने पर आगे का वृतान्त जानने की उत्सुकता से तीनों कुमारपत्नियाँ विवाह मण्डप में जाकर गीत गाने लगी। करमोचन के समय
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