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________________ ( १० ) सिंहलकुमार कंथा और खाट कहीं छोड़ कर नगरी की शोभा देखता हुआ घूमने लगा, उसने अपनी तीनों प्रियाओं को भी तपस्यारत देख लिया। कुछ दिन बाद यह बात सर्वत्र प्रचलित हो गई कि तीन महिलाएँ न मालूम क्यों मौन तपश्चर्या में लगी हुई हैं, जिन्होंने सौन्दर्यवती होते हुए भी तप द्वारा देह को कृश बना लिया है। यह वृन्तान्त सुनकर राजा के मन में उन्हें बोलाने की उत्सुकता जगी। नरेश्वर ने नगर में ढिंढोरा पिटाया कि जो इन तरुण तपस्विनियों का मौन भंग करा देगा उन्हें मैं अपनी पुत्री दूंगा। घूमते हुए वामनरूपी सिंहलकुमार ने पटह स्पर्श किया। राजा के पास ले जाने पर वामन ने दूसरे दिन प्रातःकाल युवतियों को बोलाने की स्वीकृति दी। दूसरे दिन राजा, मंत्री, महाजन आदि सब लोग प्रियमेलक तीर्थ के पास आकर जम गये । वामन ने कोरे पन्ने निकाल कर बाँचने का उपक्रम करते हुए कहा कि ये अदृश्याक्षर हैं। राजा आदि आश्चर्यपूर्वक सावधानी से सुनने लगे। वामन ने कहासिंहलकुमार अपनी प्रिया के साथ प्रवहणरूढ होकर समुद्र यात्रा करने चला, मार्ग में तूफान के चक्कर में प्रवहण भग्न हो गया। इतनी कथा आज कही आगे की बात कल कहूँगा। धनवती ने कहा-आगे क्या हुआ ? वामन ने कहा-राजन् !' देखिये यह बोल गयी। दृसरे दिन फिर सबकी उपस्थिति में वामन ने कोरे पन्नों को बाँचते हुए कहा-"काष्ठ का सहतीर पकड़कर कुमार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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