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________________ दोनों हाथ ऊँचा किये सूर्य के समक्ष खड़े तपश्चर्या कर रहे थे। सुमुख और दुमुख नामक श्रेणिक के दो राजदूत उधर से निकले। सुमुख ने मुनिराज के त्याग वैराग्य की बड़ी भारी प्रशंसा-स्तुति की तो दुमुख ने कहा-यह कायर और पाखंडी है, अपने बालक पुत्र को राजगद्दी देकर स्वयं तपश्चर्या का ढोंग करता है ! अब शत्रु लोग मौका पाकर आक्रमण करेंगे और इसके पुत्र को मार कर रानियों को बंदी कर लेंगे। इससे यह निःसन्तान होकर दुर्गति का भाजन होगा! . दुमुख के वचन सुनकर मुनिराज के हृदय में पुत्र मोह जगा और उसके मनः परिणाम, रौद्र ध्यान में लीन हो गए, वह मन ही मन शत्रओं के साथ संग्राम करने लगा। श्रेणिक ने हाथी से उतर कर मुनिराज को वन्दन किया और वहाँ से समवशरण में आकर भगवान का उपदेश सुनने लगा। उसने भगवान से 'पूछा-मैंने मार्ग में जिस उग्र तपश्वी राजर्षि को वन्दन किया, वह यदि अभी मरे तो किस गति में जावे ? भगवान ने कहा-सातवीं नरक। श्रेणिक के मन में सन्देह हुआ और क्षणान्तर में फिर प्रश्न किया तो भगवान ने उत्तर दियासर्वार्थसिद्ध ! श्रेणिक ने साश्चर्य कारण पूछा तो भगवान ने कहा दुमुख के वचनों से रौद्र ध्यान में चढ कर जब वह मान'सिक संग्राम रत था तो उसके परिणाम नरकगामी के थे पर जब उसे अपने लोच किये हुए सिर का ख्याल आया तो पश्चात्ताप पूर्वक शुभ ध्यान में आरूढ़ हो गया और भावनाओं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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