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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
[१३३ ॥सोरठा ॥ वलभी नगरि विसाल, किसा अछइ कौतिक तुनइ । लंबोदर सुरसाल, सब कौतिक देखु सही ॥१॥ पढी मंत्र प्रधान, ऊखणीयो वड़ ते अधिक । आणी धर्यउ उद्यान, खिण मांहे वलभी खड़ो॥२॥ चाली तिहां चउसाल, नीपावी रूप नायिका। देवति बिन्हे दयाल, पुण्यसार पणि साथे चल्यो ॥३॥
ढाल (८) राग वेलाउल, ऊलालानी। लंबोदर कहइ लार, मंडप मंड्यौ अपार । मेली स्वजन महंत, सुता सहित सेठ संत ॥१॥ वाट जोवइ तिहां बैठो, आणंद अंग पइठो। तितरे देवति दोई, आंगणि ते आवेई ॥२॥ साथइ ते पुण्यसार, आव्यो हरख अपार । ततखिण धन सेठ तेह, दीठी सुंदर देह ॥३॥ जाण्यौ एही जामाता, सगलां मन हुई साता। आयो सहीय ते इह किण, भलु भणी दीयइ बइसण ॥ ४ ॥ सुणि तु चतुर सुजाण, जामाता हम जाण । लंबोदर थकी लहीयो, सात सुता वर कहीयो ॥५॥ इम कहि वचन उदार, आभ्रण बहु अपार । सेठ सहु पहिरावइ, पुण्य पसाइ ते पावइ ॥ ६ ॥ धवल मंगल धुनि गीत, करइ वधू कुल रीत । चउरी मंडीय चार, कन्या परणइ कुमार ॥७॥
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