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[समयसुन्दर रासपंचक
दीधा तिहां बहु दान, वाध्यउ अधिकउ ए वान । परणी नारि प्रधान, सुन्दर सात सुजाण ॥ ८ ॥ करइ विचार कुमार, अम्ह पिय काउ अपार । इहां हुँ आयो अजाण, प्रगभ्यउ पुण्य प्रमाण ।। ६ ॥ नहिंतर किम मुझ नाम', साचउ हूत सकाम । उत्तम लक्षण एही, दाखइ दोष न कोई ॥ १० ।। उच्छव करि घरि आण्यो, सजन सहु मनि मान्यो। साते सुन्दरि साथइ, महल अनोपम माथइ ॥ ११ ॥ बइठो ते बुद्धिवंत, पवर पल्यंक हसंत । पति पासेइ बइठी पीढे, साते सुन्दरि चीढे ॥ १२ ॥ प्रश्नपडूतर पूछइ, कला किती तुम्ह कु छइ । आठमि ढाल ऊलाला, राग रंगीलि रसाला ॥ १३ ॥
[सर्व गा० १२६ ] ॥ सोरठा ॥॥ कुमर कहइ सुविचार, सुणउ नारि सब श्रुत धरी। वदउ तुम्हे वार वार, मुझ मनि कुछु मानइ नहीं । १ । श्लोक एक सुविशाल, कुमरइ घाल्यो अति कठिन। बुद्धिवती ते बाल, तेह अरथ न लहइ तुरत । २ । पीछेइ ते पुण्यसार, वड़ जास्य पाछउ वही। इम चीतवइ अपार, पछइ किसी परि पहुंचिसु । ३ । अंगित नइ आकार, जाण्यउ किहां किण जाइसी। गुणसुन्दर गुणधार, भामनि भाव भरतार नउ । ४ । १ ताम
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