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[समयसुन्दर रासपंचक दूजी इम कहइ देवता रे, फोकट फिरीया काऊ रे। तुरत तमासउ ह्वइ जिहां रे, जुगति करी आपे जाऊ रे, ॥३॥ एक कहइ कौतुक अछइ रे, पुर वलभी पुण्यवंती रे। सेठि वसइ तिहां सुदरू रे, धन नामइ धनवंती रे ॥४॥ थारे०।। नारि अछइ गुण(?धन)सुदरी रे, तसु पुत्री छइसातो रे। सकल कला गुण सोभती रे, वारू नाम विख्यातो रे ।शथारे। ब्रह्मसुदरि धनसुदरी रे, काम मुक्ति सुख कामो रे। भाग सुभाग सुसुदरी रे, गुणसुदरी गुण धामो रे ॥६॥थारे॥ वर काजइ तिण वाणियइ रे, आराध्यउ अति भावइ रे। गणपति देव गुणइ भयउ रे, मोदिक देइ मनावइ रे ॥४ाथारे० हरषित लंबोदर हुई रे, वचन कहइ ते विसालो रे । आज हुंती वर आविस्यइ रे, दिन सातमइ दयालो रे ॥ ८॥ निरत करइ दोइ नाइका रे, पूठे जे पुण्यवंतो रे। लगन तणी वेला लही रे, सही सही सुणि संतो रे ॥६॥थारे॥ पुत्री परणाजे पछइ रे, तेहनइ तू ततकालो रे। सात सुता ले सामठी रे, भलो अछइ तसु भालो रे ॥१०थारे॥ लंबोदरइ लखाईयो रे, कोई तेहनइ कुमारो रे। हरषित सेठ करइ हिवइ रे, उच्छव अधिक उदारो रे॥११॥थारे० दिवस सातमो देवता रे, आज अछइ सुखकारो रे। सातमी ढाल सुहामणी रे, रली खभाइत रागो रे ॥१२॥थारे॥
[सर्व गाथा ११३ ]
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