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[ समयसुन्दर रासपंचक
॥ सोरठा ॥ सुत नई वंछइ सेठ, सयण लोक पभणइ सुपरि। हीयउ करी नइ हेठि, नवी नारि परणउ नवल ।। १ ।। सुणउ सेठ चित लाय, परणउ तुहे म पांतरउ । सहु सयणा समझाय, परं' न परणइ ते प्रिया ॥ २ ।। प्रिया ऊपरि बहु प्रेम, नेह निगड़ बांध्यउ निपट । नारी दूजी नेम, परणेवा कीधी परत ॥ ३ ॥ सुणउ सयण सहु कोइ, दूजी परणी बहुत दुख । हमनइ बहु सुख होइ, अंगज हुइ जउ एहनइ ।। ४ ।।
[सर्वगाथा २०] ढाल (२) सग केदारा गउड़ी । सगुण सनेही रे मेरे लाला। सयण कहइ सुणि सेठ विचारी, करहु उपाय लगइ काई कारी। मंत्र तंत्र बहु मूल महंत, यक्ष यजन कीजइ वलि यंत ॥ १ ॥ जिण विधि पुत्र हुवइ जयकारी, भाजइआरति मन नी भारी। करउ उपाय एह करुणा पर, अम्हनइ सुख होवइ अपरंपर ॥२॥ सेठ कहइ सुणिज्यो सहु कोई, होम प्रमुख विधि भली न होई । समकित दूषण लागइ सबलउ, पाप बहुत मिथ्यामत
प्रबलउ ॥ ३ ॥ एक करेस्यु सही उपाय, चंगइ चित पूजिसु चित लाय । कुलदेवी नइ करी प्रणाम, कहिस्यइ देव हुस्यइ मुझ काम ॥४॥
१ सुगुण सरूपा माणसां
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