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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
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खरइ चित्त करीय वखान, सुत निमित रहइ सेठ सुजान । अन्य दिवस आराधइ देवी, सूधइ मनि पूरव जे सेवी ॥५॥ आराध्यां विधि सुं ते आवी, कहि हो सेठ बात छइ काई। पूरमन ईहित परतक्ष, देवि कहइ सुणिजे तूं दक्ष ॥ ६ ॥ कहइ सेठि सुणि तूं कुलदेवी, सदा सदा पूरवजे सेवी। हिव तुझ कुण मनिस्यइ हित करि, सुणजे वात विचारी
सुभपरि ॥ ७ ॥ मया करी मुझनइ सुत आपो, कर कर्म दुःकृत ए कापो। देवि कहै सुणिज्ये द्युति मंत सुत अनोपम हुस्यइ तुझ संत ॥ ८॥ धर्म करतां विधि सुं घीर, कितरह कालि गयां वड़वीर । इम कहि देवि हुइ ते अदृष्ट, ईहित फल्यु सेठि नै इष्ट ॥ ६ ॥ आसाहुइ सेठ नइ अधिकी, सही पुत्र हुस्यइ मनसा सुध की। कही' ढाल दूजी केदारा, अनुपम गउड़ी सहित उदारा ।। १० ।।
[सर्वगाथा ३०]
॥ सोरठा ॥ अधिक पुण्य जीव एक, अवतरियउ उत्तम घरइ। वखतवंत सुविवेक, पुण्यसिरी कूखइ पवर ॥ १ ॥ सुहणउ लाउ सुजाणि, चंद बदन चंदा तणउ । वारू करू वखाण, जुगत संघातइ ज्योति स्यूं ॥ २ ॥
१ समयसुन्दर ढाल बीजी केदारा
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