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श्री पुण्यसार चरित्र चउपई ]
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न्यातवंत नरपति छइ जिहां, कुबुद्धि कुरूप न दीसइ किहां । सुखी लोक बहु रिद्धि समृद्ध, पुहवी मांहि अछइ परसिद्ध ॥ ४ ॥ धरमवंत तिहां धनवंत, सरल सहावी सदा जसवंत । पर उपगारी बहुत पडूर, सेठ पुरंदर वसइ सनूर ॥ ५ ॥ पतिभगती गुणवती दयाल, सतीय शिरोमणि रूप रसाल । पुण्यसिरी इण नामि पवित्र, वारू विकसित वदन विचित्र ॥ ६॥ पतिव्रता पर उपगारिणी, रिषि भगवंत तणी रागिणी। शुभ आकृति नइ सोभागिणी, जणणी नारि रतन ए जणी ॥ ७॥ वचन कीजइ किता वखाण, मानइ सेठ लहइ बहुमान । दूषण एक पड्यउ देहमइ, गुणवंत सुत छइ नवि गेहमइ ।। ८ ॥
यतः गेहंपि तं मसाणं, जत्थ न दीसइ धूलि धूसिरीया * आवंति पडंति रडवडंति, दो तिन्नि डिंभाई ॥१॥ सुत विण न रहइ घर नउ सूत, पृथिवी मांहि मोटा पूत । सूनउ घर दीसइ सुत विना, कान निसुणी लोकोक्ति कना ।।६।।
यतः अपुत्रस्य गृहं शून्यं मुख शून्यं अनेत्रता - मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्व शून्यं दरिद्रता ॥२॥ राति दिवस सुत चिन्ता रहइ, करवत सरिखी कवियण कहइ । रामगिरी' ए पहिली ढाल, समयसुन्दर पभणी सुविसाल ": :.' !!
॥१०॥ [ सर्व गाथा १६ ] १ रामगिरी ए ढाल रसाल, पहिली पमणी ए सुविसाल
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