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श्री समयसुन्दरोपाध्याय कृत श्री पुण्यसार चरित्र चउपई
॥ दहा सोरठा ॥ समरू श्री सरसत्ति, सद्गुरू पिण सानिध करउ । आपो वचन उकत्ति, कहुं कथा कल्लोल सु॥ १ ॥ पुण्य करउ पुण्यवंत, जिम सुख पामउ जगत मई। अविहड़ एह अनंत, सुख साता द्यइ सासता ॥ २ ॥ पुण्य कीयो परलोकि, मन शुद्धइ जिण मानवी । थिर थापइ बहु थोकि, विद्या वली वरांगना ।। ३ ॥ उत्तम कुल उतपत्ति, लहइ लील लवणिम सदा । पुण्यसार सुपवित्त, सुणिज्यो कथा सुभाव सु ।। ४ ।।
ढाल (१) राग-रामगिरी जंबूदीप लख योजन मान, पवित्र भरत क्षेत्र परधान । नगर गोपाचल छइ गुण निलउ, तिहां पृथिवी तरुणी सिर
. तिलउ ॥ १ ॥ गढ मढ मंडित गुणह निधान, सरस कूआ सुथरा सब थान । वन उपवन वाड़ी वावड़ी, पुण्यसाल जिहां बहु पावड़ी ।। २ ॥ दीसइ दरसाऊ देहरा, सुन्दर सुघट पहुवि सेहरा। चउरासी मांड्या चउहटा, सखरा कीजइ सउदा सटा ॥ ३ ॥
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