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सुन उसके माता पिता की भक्ति की प्रशंसा की। राजा को ज्ञात होने पर उसने कुमार का कुल वंश ज्ञात कर पुत्री व जामाता के विदाई की तैयारी की। एक जहाज में वस्त्र, मणि रत्नादि प्रचुर सामग्री देकर दोनों को विदा किया व साथ में पहुंचाने के लिए रुद्र पुरोहित को भी भेजा। जहाज सिंहलद्वीप की ओर चला। ___ रत्नवती के सौन्दर्य से मुग्ध होकर रुद्रपुरोहित ने सिंहलकुमार को अथाह समुद्र में गिरा दिया और उसके समक्ष मिथ्या विलाप करने लगा। राजकुमारी ने यह कुकृत्य उसी दुष्ट पुरोहित का जान लिया। उसके आगे प्रार्थना करने पर रत्नवती ने कहा मैं तो तुम्हारे वश में ही हूँ अभी पति का बारिया हो जाने दो, कह कर पिण्ड छुड़ाया। आगे चलने पर समुद्र की लहरों में पड़कर प्रवहण भग्न हो गया। कुमारी ने तख्ते के सहारे तैर कर समुद्रतट प्राप्त किया और प्रियमेलक यक्ष का भेद ज्ञात कर जहाँ आगे धनवती बैठी थी, रत्नवती ने भी जा कर मौनपूर्वक आसन जमा दिया। पापी पुरोहित भी जीवित बच निकला और उसने कुसुमपुर आकर राजा का मंत्रिपद प्राप्त कर लिया।
सिंहलकुमार को समुद्र में गिरते हुए किसीने पूर्व पुण्य के प्रभाव से ग्रहण कर लिया और उसे तापस आश्रम में पहुँचा दिया। शुभ लक्षण वाले कुमार को देख कर हर्षित हुए तापस ने अपनी रूपवती नामक पुत्री के साथ पाणिग्रहण करा दिया।
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