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________________ > यह कुसुमपुर नगर है और यह विश्वविश्रुत प्रियमेलक तीर्थ है। यहां का 'चमत्कार प्रत्यक्ष है, यहाँ जो मौन तप पूर्वक शरण लेकर बैठती है उसके बिछुड़े हुए प्रियजन का मिलाप निश्चय पूर्वक होता है। धनवती भी निराहार मौनव्रत ग्रहण कर वहाँ पतिमिलन का संकल्प लेकर बैठ गयी । इधर सिंहलकुमार भी संयोगवश हाथ लगे हुए लम्बे काष्ट खंड के सहारे किनारे जा पहुँचा। आगे चल कर वह रतनपुर नगर में पहुँचा, जहाँ के राजा रत्नप्रभ की रानी रतनसुन्दरी की पुत्री रत्नवती अत्यन्त सुन्दरी और तरुणावस्था प्राप्त थी । राजकुमारी को साँप ने काट खाया जिसे निर्विष करने के लिए गारुड़ी मंत्र, मणि, औषधोपचार आदि नाना उपाय किये गये पर उसकी मूर्छा दूर नहीं हुई, अन्ततोगत्वा राजा ने ढंढोरा पिटवाया | कुमार सिंहलसिंह ने उपकार बुद्धि से अपनी मुद्रिका को पानी में खोल कर राजकुमारी पर छिड़का और उसे पिलाया जिससे वह तुरन्त सचेत हो उठ बैठी । राजा ने उपकारी और आकृति से कुलीन ज्ञात कर कुमार के साथ राजकुमारी रत्नवती का पाणिग्रहण करा दिया रात्रि के समय रंगमहल में कोमल शय्या को त्याग कर धरती सोने पर रत्नवती ने इसका कारण पूछा। कुमार यद्यपि अपनी प्रिया के वियोग में ऐसा कर रहा था पर उसे भेद देना उचित न समझ कहा कि - प्रिये ! माता पिता से बिछुड़ने के कारण मैंने भूमिशयन व ब्रह्मचर्य का नियम ले रखा है । राजकुमारी ने यह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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