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________________ सम्मुख उपस्थित किया और सर्व सम्मति से कुमार के साथ पाणिग्रहण करा दिया। सिंहलसिंह अपनी प्रिया धनवती के साथ सुखपूर्वक काल निर्गमन करने लगा। राजकुमार जिस गली में जाता उसके सौन्दर्य से मुग्ध हो नगर वनिताएँ गृह कार्य छोड़ कर पीछे पीछे घूमने लगती पंचों ने मिलकर सिंहल नरेश्वर से प्रार्थना की कि आप कुमार को निवारण करो अथवा हमें विदा दिलाओ! राजा ने कुमार का नगर वीथिकाओं में क्रीड़ा करना बन्द कर महाजनों को तो सन्तुष्ट कर दिया पर कुमार के हृदय में यह अपमानशल्य निरन्तर चुभने लगा। कुमार ने भाग्य परीक्षा के निमित्त स्वदेश-त्याग का निश्चय किया और अपनी प्रिया धनवती के साथ अद्ध रात्रि में महलों से निकल कर समुद्रतट पहुंचा। उसने तत्काल प्रवहणारूढ़ होकर परद्वीप के निमित्त प्रयाण कर दिया। सिंहलकुमार का प्रवहण समुद्र की उत्ताल तरंगों के बीच तूफान के प्रखर झोकों द्वारा झकझोर डाला गया । भग्न प्रवहण के यात्रीगणों को समुद्र ने उदरस्थ कर लिया। पूर्व पुण्य के प्रभाव से धनवती ने एक पाटिया पकड़ लिया और जैसे तैसे कष्टपूर्वक समुद्र का तट प्राप्त किया। वह अपने हृदय में नाना विकल्पों को लिये हुए उद्वेग पूर्वक वस्ती की ओर बढ़ी। नगर के निकट एक दण्ड कलश और ध्वज-युक्त प्रासाद को देख कर किसी धर्मिष्ठ महिला से नगरतीर्थ का नाम ठाम पूछा । उसने कहा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003820
Book TitleSamaysundar Ras Panchak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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