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चम्पक सेठ चौपई ] हुँ मिलवा भणी जाऊं छु, तां सीम तुम्हे राखो रे। तुम्हां सरीखो को नहीं, बांधव मति ना दाखो रे ॥८॥ उ० मुझ बहिन जौ ते मुई, तौ हुं साथै बलस्यु रे। कुण दुख देखै बहन नौ, विरह वियोग टलस्यु रे ।।६।। उ० मुझ नै मुई जौ सांभलौ, खरचज्यो सर्व तिवारै रे। वंचना सेठ मन मानीयौ, ए परी मरै किवारो रे ॥१०॥ उ० तौ लोबौ फबै मुझ नै, इम जाणी वात मानी रे । महासेन संकेत थी, आवि उभो रह्यो कानी रे ॥११।। उ० महासेन मांग्या तिहां, रतन पाँच मुझ दीजै रे। थांप रूप मूक्यां हुता, कच पच कांइ न कीजै रे ॥१२।। उ० लोभी सेठ विमांसीयो, रतन वात छै थोड़ी। कपट कौश्या पेटी चढ्यै, तो पामुधन कोड़ी रे ॥१३।। उ० . रतन पाछा यु एहने, तौ प्रतीत मुझ वाधे रे । पेटी जास्यै हाथ थी, रतन तणे भेद लाधै रे ॥१॥ उ० च्यारि रतन काढी दीया, पांचमै ने ते मूक्यों रे। धनावह सेठ ने घरे, थे तौ ग्रहण मूक्यो रे ॥१५॥ उ० सेठ कहै जा पुत्र तूं , पांचम रतन दे आणी रे। महल अडाणौ मूकि नै, आपणी सूझै कमाणी रे ॥१६।। उ० तुरत पुत्र ते तिम कीयो, रतन आणी ने दीधो रे। प्रतीति वधारी आपणी, सेठि भलौ काम कीधौ रे ॥१७|| उ० वधामणी रे वधामणी, आपज्यो माता अम्हनै रे। समाधि थई छै बहिन नैं, माणस मूक्यो तुम्हनै रे ॥१८॥ उ० बहिन तुम्हे मत आवेज्यो, हुँ तुझ मलवा आइस रे।
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