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[समयसुन्दर रासत्रय
राजा कहै सहु साथ नै, ऊतावल छ केही रे। लगन को आज लीधौ नहीं, जास्यै किहां नहीं तेही रे ॥३१॥ अ० सहु जावौ आपण घरे, भोजन करो भरपूरौ रे। इम कहि राजा ऊठीयो, आज थाय छै असूरो रे॥३२।। अ० महासेन मन चीतवै, दीठौ न्याय तपासौ रे । रतन गया ए माहरा, समयसुदर आवै हासो रे ॥३३।। अ०
[सर्वगाथा ८३ ] ढाल (५) वेगवतो तिहां बांभणी, एहनी इक दिन कपटकोश्या घरे, महसेन गयौ मतवंतौ रे। पांच रतन परपंच नौ, सगलौ कह्यौ विरतंतो रे ॥१॥ उपगारी पिण एहवा, मिलै पुण्य संजोगो रे। बहुरतना वसुधरा, सहु सरस्यै नहिं लोगो रे ।।२।। उ० कपटकोश्या मन ऊपनी, दया मया कहै एमो रे वैगा रतन तुझ वालसु, प्रपंच कर जेम तेमो रे ॥३॥ उ० दिलासा इम देइ नै, आप गई घर माहे रे । सार रतन सगला लीया, वटुआ मांह हाथ वाहै रे ॥४॥ उ० वारू वस्त्र विलाति ना, कसतूरी करपूरो रे । मणि माणक मोती करी, पेई भरी भरपूरो रे ॥५॥ उ० ऊंट चढी गई पाधरी, वंचनामति आवासो रे। त्रिण्ह च्यार साथे सखी, सेठ ने कहै भरी सासो रे ॥६॥ उ० सेठजी विनती सांभलौ, वसंतपुर मुझे बाई रे। कंठगत प्राण तिका थई, मुझ नै वेग बुलाई रे॥७॥ उ०
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