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चम्पक सेठ चौपई ] :
[ ६३ सूत्रधार जाणै सहू, भूडी का भीति कीधी रे। .... अम्हे तो मजरी आपणी, पूरी भरनै दीधी रे ॥२०॥ अ० सूत्रधार कहै सांभलौ, भीत भली पर करतां रे। दोरी देई बिहुं दिस, थर ऊपर थर धरतां रे ॥२१॥ अ० सोल शृंगार सजी करी, देवदत्त नी बेटी रे । अम्हां पास ऊभी रही, मल्हपती माती घेटी रे ॥२२।। अ० चंचल दृष्टि गई षिहां, सिथल आव्यौ इंट बंधौ रे। आवी कां नारी इहां, किसौ दोष कामंधो रे ॥२३॥ अ० ते कहै हुं आवी इहां, राज मारग नै भांजी रे । परव्राजक नागौ मिल्यौ, ते देखी हुँ लाजी रे ॥२४॥ अ० परव्राजक तेडी कह्यो, कां इण मारग आयो रे । नगन कहै हुँ स्यु करु, घौड़ौ जमाई द्रौड़ायौ रे ॥२॥ अ० तुरत जमाई तेडीयौ, कां तू घोड़ी द्रौड़ावै रे। जाण्यौ जमाई माहरै, माथै तो हिव आवै रे ।।२६।। अ० इण सगले टलती करी, हुँ पिण बुद्धि उपायुरे। . राजन करम विधातरा, तिण मूक्यौ तौ आवु रे ॥२७॥ अ० रीस करी राजा कहै, भो भो मंत्रि प्रधानो रे। वेगी आणो विधातरा, ए करै कां तोफानो रे ॥२८॥ अ० हुँ अपराध सासु नहीं, गुदरु नहीं हुँ केहथी रे । मंत्र प्रधान धूरत कहै, गई नासी ते गेहथी रे ॥२६ अ० तेज प्रताप तुझ आकरौ, तो थी थरहर धूजै रे।। माणस सगले मूकीया, खबर हुस्यै दिन दूजै रे ॥३०॥ अ०.
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