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चम्पक सेठ चौपई] राज सभा गयौ पाधरौ म० पू, चास नै भास रे। कुण नगर कुण राजवी म० केही न्याय तपास रे, ॥१२॥ ला० किण ही के पूछयां थकां म० विवरे सेती बात रे। महासेन मन चिंतव्यौ म० समयसुन्दर ते कहात रे ॥१३।।ला०
[सर्व गा०५०] ढाल (8) बे बांधव वंदण चल्या एहनी, अन्यायपुर पाटण इसौ, तेहनो सुणो तमासौ रे, सरखे सरखु सहु मिल्यु, सुणतां आवै हासौ रे ॥११॥ अ० निर्विचार राजा इहां, सर्वलूटाक तलारो रे, सर्वगिल मुहतो इहां, प्रधान इहां अनाचारो रे ॥२॥ अ० अज्ञानराशि गुरु छै तिहां, राजवैद्य जंतुकेतो रे। उषध रस छै एहनै, कुटंब कोलाहल तेतो रे ॥३।। अ० नगरसेठ वंचनामती, पुरोहित ते सिलापातो रे, कपट कोश्या वेश्या सही, घालै ते सहु नै घातो रे ॥४॥ अ० नगर सरूप जाणी करी, महासेन विमासै रे। गया रतन ए माहरा, केहनै जइयै पासै रे ॥५॥ अ० इण अवसर इक डोकरी, राज सभा माहे आवी रे । रोती रड़वड़ती थकी, छूटे केसे छावी रे॥६॥ अ० राजा पास थई करी, ऊंचे साद पुकारी रे। न्याव करौ राज माहरौ, हुँ दुखणी थई भारी रे ॥७॥ अ० महासेन पणि तिहां गयौ, देखो कुण अन्यायो रे। कुण तपास राजा करै, पछै करु हु को उपायो रे ॥८॥ अ०
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