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[ समयसुन्दर रासत्रय ढाल (३) ऊमटि आई वादली एहनी लाख लाख ते मोल ना, मन मोहना, नीसख्या पांच रतन्न रे। परमेसर तूठौ मुन, महा हरषित थयौ मन्न रे ॥ १ ॥ ला० एक रतन काढी करी, ग्रहणे मूक्यो तेह रे । लाख द्रव्य लेइ कीया म० ऊंचा आवास गेह रे ॥ २॥ ला० रतन चार राख्या रूड़ा, म० गुफ्त पणै घर मांहि रे । महासेन जात्रा करी, म० आयौ अंग उच्छाह रे ॥३॥ ला० महासेन कहै सेठि जी, म० थापण आपौ मुझ रे। सेठि कहै तू कुण म० हुं तो नोलखं तुझ रे ॥ ४ ॥ ला० अम्हे तो थापण केहनी म० राखु नहीं स्युकाम रे। तू भूलौ आयौ इहां म० सरखौ होस्यै नाम रे ॥५॥ ला. महासेन विमासवा म० लागौ सु कहै एह रे । विटल ठगारा वाणीया म० दीसै छै निसंदेह रे ॥ ६॥ ला० गुपति दीधो ते ओलवै म० परतखि दीधौ आध रे। क्रय विक्रय करता थका म० लूट तौ पिण साध रे ॥ ७॥ ला तोला माना त्राकड़ी म° जुगति कला नै जोर रे । लूटी ल्यै सहु लोक नै म० चावा चौहटै चोर रे ॥ ८॥ ला० वणक तणी नीवी वड़ी म० वेश्या बड़ौ सवाद रे। दरसण नौ आधार तूम० नमोस्तु मिरषावाद रे ॥ ६ ॥ ला० यु विमास विलखौ थयौ म० ऊठि गयौ महासेन रे। कहौ केही पर कीजीय म० राख्या रतन अनेन रे ॥१०॥ ला०
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